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    Home»IMP news»Seeds Adulteration: बोगस बीज की समस्या कृषि विभाग से भी बड़ी; देखिए महाराष्ट्र का हाल क्या है
    IMP news

    Seeds Adulteration: बोगस बीज की समस्या कृषि विभाग से भी बड़ी; देखिए महाराष्ट्र का हाल क्या है

    superBy superDecember 31, 2022Updated:December 31, 2022No Comments4 Mins Read
    maharashtra agriculture seed adulteration
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    Agricultural System Is Ineffective Due To Seeds Adulteration: नागपूर : विश्व के साथ महाराष्ट्र मे भी अब पारंपरिक बीजों के साथ शुरू हुई यात्रा ने संकर, संशोधित बीजों को जन्म दिया है। हालांकि इस सफर के दौरान बीज बाजार में चोरियां भी बढ़ गईं है। बीजों की अत्यधिक कीमतों के संबंध में एकाधिकार विरोधी और निष्पक्ष व्यापार कानून भी मौजूद हैं। लेकिन नकली बीजों को रोकने के लिए तंत्रों की एक लंबी श्रृंखला है। फिर भी अहम सवाल यह है कि मौसम के दौरान सभी प्रणालियां अप्रभावी क्यों हो जाती हैं। क्योंकि इसपर कृषि विभाग की टीम कितना काम करती है, यही सवाल है।

    बीजों के चुनिन्दा अच्छे दानों को निकालकर, सुखाकर, बीजों को गोमूत्र लगाकर मटकी मे रखकर नीम के पत्तों से लेप करके संरक्षित किया जाता था। जिस किसान में बीजों को बचाने का हुनर ​​होता था, उसे बुआई के मौसम में बीजों के लिए यह बेचकर पर्याप्त धन मिल जाता था। सत्तर के दशक तक भारत मे यही स्थिति थी। लेकिन अब हाइब्रिड बीजों ने 1980 के आसपास बाजार में प्रवेश किया। बीजों को बचाने का पारंपरिक तरीका लगभग लुप्त हो गया। यहीं से संकर संशोधित बीज की यात्रा शुरू हुई। जो आगे चलकर जैविक बीज तक पहुंच गई।

    बीजों में यह क्रांति निश्चित रूप से उत्पादन बढ़ाने के लिए लाभदायक है। लेकिन संकर बीजों के उपयोग में वृद्धि के बाद, कुछ किस्मों की कृत्रिम कमी, काला बाज़ारी और नकली बीज बाजार मे होना आम हो गया। किसानों की बढ़ती मांग का लाभ उठाते हुए इस क्षेत्र में कई महाभागों का दबदबा हो गया। जिससे कुछ ही दिनों में उन्होंने लाखों रुपये प्राप्त किए। बीज के क्षेत्र में आज भी कुछ जानी-मानी कंपनियां हैं। लेकिन कुछ कंपनियां ऐसी भी हैं, जो बारिश के मौसम में छाते की तरह आती हैं और बहुत जादा मुनाफा कमाकर गायब होती है।

    भारत मे ही नही पूरे विश्व मे अधिकांश किसान फसल उगाते हैं, जबकि कुछ ही किसान बीज उगाते हैं। यह अधिक पैसा बनाता है। कंपनियां बीज उत्पादकों से बीज खरीदती हैं। इन बीजों को बीज प्रसंस्करण केंद्र में लाया जाता है। प्रयोगशाला परीक्षण के बाद इस बीज को कंपनी के परिसर में प्रमाणित किया जाता है। बीज उगाने वाले से बीज प्राप्त करने के बाद, खराब गुणवत्ता वाले बीजों को ‘ग्रेविटी सेपरेटर’ मशीन द्वारा अलग किया जाता है। तमाम तरह के परीक्षण के बाद बीज कंपनियां अपनी सुविधानुसार ‘लॉट नंबर’ देती हैं।

    कपास के बीज को अम्ल से विसंक्रमित करने के लिए उपचारित किया जाता है। यदि इसमें उचित मात्रा में अम्ल का प्रयोग न किया जाए तो बीज के अंकुरण पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है। फिर इस बीज की अंकुरण क्षमता, प्राकृतिक शुद्धता की जांच की जाती है। हालाँकि आनुवंशिक शुद्धता के परीक्षण में समय लगता है। बीज बोने के बाद पौधे में फूल आने तक आनुवंशिक शुद्धता का परीक्षण नहीं किया जा सकता है। बीज के पैकेट पर जो लिखा है उसका सत्यापन तुरंत नहीं सामने आ सकता है। बीज अंकुरण की शक्ति कम होने पर शिकायत बढ़ जाती है। हाल ही में बीजों के दाम भी बेतहाशा बढ़े हैं। स्टॉक का निरीक्षण, रिकॉर्ड की जांच, संदिग्ध स्टॉक की बिक्री को रोकना, यह सुनिश्चित करना कि माल का रिकॉर्ड निर्धारित पैटर्न में है। यह कृषि कर्मचारियों के अधिकार क्षेत्र में है। हालांकि, नकली बीजों की शिकायतें बढ़ रही हैं। बेशक, हर बीज को बाजार से खरीदा जाना चाहिए, यह विचार कि बीज बाजार अगले दो दशकों में बढ़ता रहा, और उसमें दोष आ गए। वे भूल गए कि कुछ बीजों को किसान घर में ही इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं से नकलची आते हैं।

    चूंकि सोयाबीन एक स्वपरागित फसल है, इस फसल के बीज सीधे किस्म के होते हैं। इसलिए हर साल बीज बदलने की जरूरत नहीं है। इससे उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है। यदि दो वर्ष के भीतर बोए गए प्रमाणित बीजों से उत्पादित सोयाबीन को बोने के लिए उपयोग किया जाए तो फायदा होगा। अच्छा अंकुरण सुनिश्चित करने के लिए पिछले वर्ष के स्व-निर्मित बीजों के अंकुरण की जांच करना बहुत महत्वपूर्ण है। बुवाई के लिए बीजों की मात्रा अंकुरण क्षमता के अनुसार निश्चित की जा सकती है। इसके अनुसार मिट्टी में अंकुरण क्षमता का परीक्षण, गमले में बीजों का परीक्षण आदि सहित कुछ अन्य माध्यमों से उत्पादकता प्राप्त की जाती है। बीज परीक्षण प्रयोगशाला में किसान अपने बीजों के अंकुरण की जांच स्वयं कर सकते हैं। इसके लिए प्रति परीक्षण सिर्फ 40 रुपये का शुल्क लिया जाता है। (Farmers can test the germination of their own seeds in a seed testing laboratory)

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