Farmers Unaware Of How To Complaint About Bogus Seeds: नागपूर : हर साल खेत मे बुवाई के मद्देनजर भरारी टीमें नियुक्त की जाती हैं। कृषि विभाग यह टीम बनाता है। इनके माध्यम से फर्जी किस्म के बीजों पर अंकुश लगने की उम्मीद की जाती है। लेकिन महाराष्ट्र राज्य मे ऐसा नहीं होता है। क्योंकि टीम इसपर अच्छी तरह से काम नही करती है। लेकिन अगर कोई विक्रेता फर्जी बीज बेचते पाया गया तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। लेकिन उसी शटर में नए लाइसेंस से बीज बेचने का धंधा महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठवाडा सहित पश्चिम महाराष्ट्र मे चल रहा है। इसलिए यदि बीज नकली निकले तो किसानों के मन में सवाल है कि निवारण कहां करें। (how to complaint about bogus seed to agriculture department Maharashtra)
हर बीज उत्पादन भी क्षेत्रीय विशेषताओं के अनुसार भिन्न होता है। उस स्थान की परिस्थितियों और वातावरण का इसपर प्रभाव पड़ता है। हाईब्रिड सब्जियों के बीज कर्नाटक में, कपास के संकर बीज आंध्र प्रदेश के कुरनूल क्षेत्र और गुजरात में भी पाए जाते है। जूट बीज मराठवाड़ा में उगाया जाता है, लेकिन इसकी मुख्य खेती पश्चिम बंगाल में होती है। हाइब्रिड ज्वार का आंध्र प्रदेश के नंद्याल जिले में अच्छा बीज उत्पादन होता है। लेकिन अब बदलती तकनीक के कारण किसी भी क्षेत्र में कोई भी बीज उत्पादन लिया जा सकता है।
1980 के दशक में संकर किए बीजों की संख्या में वृद्धि हुई। किसान भी अधिक उत्पादन के लिए इस बीज का प्रयोग करने लगे। इसलिए राष्ट्रीय बीज परियोजना के तहत प्रत्येक राज्य में एक बीज निगम स्थापित करने का निर्णय लिया गया। वर्ष 25 अप्रैल 1976 को महाराष्ट्र राज्य बीज निगम यानी ‘महाबीज’ अस्तित्व में आया। हालांकि ‘महाबीज’ ने इस क्षेत्र में काम बढ़ाया है, लेकिन महाबीज के बीजों में झूठ भी पाया जाता है। किसानों ने इस बारे मे भी अपनी बाते कृषि विभाग के सामने रखी है।
वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय (Vasantrao Naik Marathwada Agricultural University) द्वारा ‘महाबीज’ (mahabeej) को आपूर्ति किए गए सोयाबीन (adulteration of soybean seeds supplied) के बीजों में मिलावट और अन्य कंपनियों से कभी-कभी फर्जी बीजों की शिकायत के बाद, बीजों की शुद्धता पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। मराठी न्यूज पेपर लोकसत्ता मे इस बारे मे लिखा गया है। जब बोगस ‘कीट’ बीजों की बात शुरू हुई, तो शोध निदेशक ने अशुद्ध बीजों को ‘कटाई करने वालों’, ‘जादा बारिश’ और ‘हार्वेस्टर’ पर दोष रख दिया। उस समय यह उल्लेख किया गया था कि सोयाबीन की किस्म कितनी महत्वपूर्ण थी और इसने कैसे इसमें क्रांति लाई थी। लेकिन बिना यह स्पष्ट किए कि मिलावट क्यों हुई, इसपर पडदा डाल दिया गया। चूंकि सिस्टम में तत्व पर कोई क्रिया नहीं होती है, इसलिए सिस्टम में कोई बदलाव नहीं होता है। और किसान भाई को समस्याए आती रहती है।
1963 में संस्था ‘राष्ट्रीय बीज निगम’ की स्थापना के बाद भारत सरकार ने 1966 में बीज अधिनियम बनाया। फिर 1968 में एक एक्ट बनाया गया। 1972 में मूल अधिनियम के कुछ प्रावधानों में परिवर्तन किया गया। समय के साथ इसमें बदलाव आया और 1986 में बने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने भी इसमें बहुत मदद की। लिहाजा बीज धोखाधड़ी मामले में न्याय मिलना शुरू हुआ। अब बीज अंकुरण और मिलावट के संबंध में जागरूकता आई है। लेकिन इस संबंध में बीजों की खरीद की वैध रसीद आपके पास होनी चाहिए। आप को बीज की थैली रखनी चाहिए। लेकिन बुवाई से पहले बीज का नमूना भी रखना चाहिए। फसल की पैदावार होने तक इसे बनाए रखना होता है। बोने से लेकर जुताई तक का खर्च खाते के हिसाब से दर्ज करना चाहिए। बीज अंकुरण की शिकायत होने पर उस क्षेत्र पर कृषि अधिकारी और विद्यापीठ के द्वारा पंचनामा किया जाता है। इसमें फसलवार मानदंड भी उपयोगी होते हैं। प्रत्येक फसल के लिए अलग-अलग पैरामीटर होते हैं। कृषि अधिकारियों द्वारा पंचनामा किए जाने के बाद वे रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। उस आधार पर किसान को मुआवजे की मांग करनी पड़ती है। ग्राहक न्यायालय भी एक विकल्प है।